योगी के विरोधी मगर बीजेपी के 'फेवरेट' हो चुके हैं आशीष पटेल!
Ashish Patel BJP story

आशीष पटेल मौजूदा वक्त में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के धुर विरोधी हैं। मगर वे क्या यूपी बीजेपी के फेवरेट हो चुके हैं? क्या यूपी बीजेपी के नेता दबी जुबान में उनकी तारीफ कर रहे हैं? क्या आशीष पटेल को यूपी बीजेपी का मौन समर्थन है? ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि बीजेपी के एक भी नेता ने उनकी आलोचना नही की है। योगी सरकार पर सबसे बड़ा अटैक करने के बावजूद एक भी नेता, एक भी मंत्री आशीष पटेल के खिलाफ नही बोला है। किसी ने उनको समझाने, सलाह देने या फिर शांत कराने की कोशिश भी नही की। ये योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली के खिलाफ यूपी बीजेपी के भीतर घुमड़ रहे गुस्से, हताशा और निराशा का स्पष्ट प्रतीक है। योगी आदित्यनाथ के राज में अफसरशाही के बेलगाम होने के आरोप तेजी से सिर उठाते आए हैं। खुद बीजेपी के नेता इससे पीड़ित हैं। वे लगातार अपनी आवाज़ मुखर करते आए हैं। उनका मानना है कि बावजूद योगी आदित्यनाथ की सरकार उनके साथ नही खड़ी हुई। वह बेलगाम अफसरशाही के साथ खड़ी दिखाई दी।
इसी का नतीजा रहा कि गाजियाबाद के लोनी से बीजेपी के विधायक नंदकिशोर गुर्जर को अपनी ही सरकार पर खुलकर हमला करने को मजबूर होना पड़ा। नंदकिशोर गुर्जर ने योगी आदित्यनाथ के दौर में ही रोज लगभग 50 हजार गायों के काटे जाने और उनमें सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत का गंभीर आरोप मढ़ दिया। उन्होंने सीधे सीधे यूपी के चीफ सेक्रेटरी को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार सिंह योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी और विश्वस्त हैं। ऐसे में उन पर लगाए इस आरोप ने राजनीतिक हलकों में चारों तरफ हलचल पैदा कर दी। नंदकिशोर गुर्जर यहीं नहीं रूके। उन्होंने योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाते हुए यहां तक कह दिया कि अगर ये किसी और की सरकार होती तो वे अभी तक सीएम के घर में भूस यानि भूसा भर देते। नंदकिशोर गुर्जर का गुस्सा इसलिए भी भड़का क्योंकि वे खुद अपनी ही पार्टी की महामंत्री की रिपोर्ट दर्ज नहीं करा पा रहे थे। उनकी पार्टी की गाजियाबाद की महिला महामंत्री अपने साथ हुई छेड़छाड़ की शिकायत को लेकर पुलिस के दरवाजे घूमती रहीं मगर उनकी रिपोर्ट दर्ज नही हुई।
ये हालात सिर्फ किसी एक विधायक के नही हैं। यूपी में ऐसे उदाहरणों की बाढ़ आई हुई है। यूपी के जौनपुर में बदलापुर से बीजेपी के विधायक रमेश मिश्रा ने भी लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद योगी सरकार की इसी बेलगाम शैली पर सवाल खड़े किए थे और यहां तक कह दिया था कि अगर यही हालात रहे तो विधानसभा चुनावों में बीजेपी का जीतना मुश्किल है। रमेश मिश्रा को इस विरोध की ये सजा मिली कि उनकी सिक्योरिटी घटा दी गई। बाद में उनके विरोध जताने पर वो बहाल हुई। इसी तरह लखीमपुर खीरी से बीजेपी के विधायक योगेश वर्मा को सरेआम थप्पड़ मारने वाले अवधेश सिंह पर पूरे छह दिनों तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई। बाद में संगठन के हस्तक्षेप करने और अवधेश सिंह व उनकी पत्नी को पार्टी से निकाल बाहर कर देने के बाद जाकर सरकार जागी और एफआईआर दर्ज हो सकी। मगर योगेश वर्मा को न्याय फिर भी नहीं मिला। इससे आहत योगेश वर्मा ने यहां तक कह दिया कि वे किस मुंह से विधानसभा आएं? उन्हें शर्म आती है।
आशीष पटेल इन हालातों में ऐसे पहले नेता हैं जिन्होंने बीजेपी के सहयोगी के होने के बावजूद अपने बयानों से सरकार की ईंट से ईंट बजा दी है। उन्होंने खुलकर योगी सरकार के सूचना निदेशक शिशिर सिंह, मीडिया सलाहकार मृत्युंजय सिंह और एसटीएफ चीफ अमिताभ यश पर हमला बोल दिया है। सीएम योगी के अधीन आने वाले सूचना विभाग पर बेहद गंभीर इल्जाम लगाते हुए उन्होंने यहां तक कह दिया कि सूचना अपने 1700 करोड़ के भारी भरकम बजट का इस्तेमाल योगी सरकार के अपने मंत्रियों के मान मर्दन और चरित्र हनन में कर रहा है। उन्होंने एसटीएफ को ललकारते हुए सीधी चुनौती दे डाली कि एसटीएफ उनके सीने में गोली मारे। ये सारे हमले सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ पर किए गए माने गए क्योंकि सूचना और गृह ये दोनो ही मंत्रालय योगी के पास हैं और ये सारे अधिकारी योगी के बेहद करीब और उनकी आंखों के तारे माने जाते हैं।
सूत्र बताते हैं कि ऐसे में आशीष पटेल का ये अंदाज बीजेपी के अपने विधायकों व संगठन से जुड़े नेताओं को बेहद रास आ रहा है। वे खुलकर नही बोल रहे मगर सूत्रों के मुताबिक वे आशीष पटेल के इस कदम से बेहद खुश और संतुष्ट बताए जा रहे हैं। इसकी ठोस वजहें हैं। दरअसल योगी सरकार के कामकाज का ये आलम है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बुरी हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी गई 15 पन्नों की रिपोर्ट में हार का जो सबसे बड़ा कारण बताया गया, वो सरकार की निरंकुश कार्यशैली और अफसरशाही का बेलगाम होना ही था। रिपोर्ट में लिखा गया कि योगी सरकार में अफसर इस कदर बेलगाम हैं कि खुद बीजेपी के अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं की ही सुनवाई नहीं हो रही। उल्टा वे ही बुरी तरह से प्रताड़ित हैं। केंद्रीय आलाकमान को दिए गए हार के फीडबैक में योगी आदित्यनाथ के अंडर काम करने वाले सूचना विभाग का खासतौर पर जिक्र था। सूत्रों के मुताबिक आलाकमान को बताया गया कि सूचना विभाग बीजेपी के अपने ही नेताओं के मान-मर्दन और चरित्र हनन में लगा हुआ है।
योगी आदित्यनाथ के खिलाफ यूपी बीजेपी के भीतर ही भीतर धधकती आग की एक झलक उस वक्त भी देखने को मिली जब डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने खुलकर कह दिया कि संगठन सरकार से बड़ा है। उन्होंने ये बात योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में कही और इस पर कार्यकर्ताओं ने जमकर तालियां बजाईं। यूपी के एक और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी योगी आदित्यनाथ की इसी कार्यशैली से बेहद असंतुष्ट बताए जाते हैं। इन नेताओं के इसी दर्द को आशीष पटेल ने ताल ठोंककर कह दिया। ऐसे में यूपी बीजेपी के तमाम नेता आशीष पटेल की ओर उम्मीद और सराहना भरी नजरों से देख रहे हैं। उन्हें इस बात का संतोष है जिस बात को पार्टीगत मजबूरियों के चलते वे खुलकर नही कह सके, उसे किसी ने तो आवाज़ दी!!
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