महाकुंभ में भगदड़ के दौरान बंद क्यों थे पांटून पुल? कैसे 12 दिन में बदल गया ऑर्डर, बड़ा ख़ुलासा

Feb 4, 2025 - 14:41
Feb 4, 2025 - 14:42
महाकुंभ में भगदड़ के दौरान बंद क्यों थे पांटून पुल? कैसे 12 दिन में बदल गया ऑर्डर, बड़ा ख़ुलासा

महाकुंभ में जिस मौनी अमावस्या के रोज़ भागदौड़ हुई, उस रोज़ पांटून के पुल बंद क्यों थे? ये सवाल सबके ज़ेहन को परेशान कर रहा था कि आख़िर जिस रोज़ इन पुलों की सबसे अधिक ज़रूरत थी, वे बंद क्यों थे? टॉप सीक्रेट ने इस सवाल की पड़ताल शुरू की। जाँच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

सबसे पहले हमारे हाथ लगी 24 फ़रवरी 2024 की यूपी कंस्ट्रक्शन डिवीज़न की वो चिट्ठी है जिसके तहत इन पांटून पुलों के लिए साल की लकड़ियों की सप्लाई का ऑर्डर जारी किया गया था। इस चिट्ठी में लिखा था कि अरुणाचल प्रदेश फ़ॉरेस्ट कॉरपोरेशन को 2,04,500 रुपया प्रति क्यूबिक मीटर की दर से पांटून पुलों के लिए ये काम सौंप दिया गया है। अरुणाचल प्रदेश फ़ॉरेस्ट कार्पोरेशन को इस दर पर पांटून पुल के लिए साल स्लीपर लकड़ियों की सप्लाई करनी है।

मगर हैरानी तब हुई जब महज़ 12 दिनों बाद यानी 7 मार्च 2024 को इस ऑर्डर को कैंसिल कर दिया गया। तर्क यह दिया गया कि राज्य सरकार से इसे सैंक्सन नहीं किया गया है। ये तब हुआ जबकि साल 2019 के अर्धकुंभ के लिए भी अरुणाचल प्रदेश के फ़ॉरेस्ट कॉरपोरेशन ने ही लकड़ियों की सप्लाई की थी। उस समय अरूणाचल प्रदेश फ़ॉरेस्ट कॉरपोरेशन ने 1,58,250 रुपया प्रति क्यूबिक मीटर की दर से साल स्लीपर सप्लाई किए थे। हमारे पास इससे जुड़ा काग़ज़ात भी है और ज़रूरी बयान भी।

हमने अरुणाचल प्रदेश फ़ॉरेस्ट कॉर्पोरेशन के MD जी रिमे से संपर्क किया। उन्होंने हमसे बातचीत में इस बात की पुष्टि की और साथ ही ये भी कहा कि अरुणाचल प्रदेश फ़ॉरेस्ट कार्पोरेशन इस आदेश के लिए तैयार भी थी और उत्सुक भी।

बड़ी बात ये भी थी कि सिर्फ़ अरुणाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि हरियाणा और झारखंड की फ़ॉरेस्ट कॉरपोरेशन को भी पांटून पुलों की ख़ातिर साल स्लीपर की सप्लाई से बाहर कर दिया गया। इन दोनों ही प्रदेशों की ओर से साल स्लीपर की सप्लाई के लिए आवेदन किया गया मगर सफलता मिली छत्तीसगढ़ एक निजी कंपनी और उसकी अगुवाई में बनाए गए कंसोर्टियम को। यानि हुआ यूँ कि एक सरकारी कार्पोरेशन को ऑर्डर देकर कैंसिल कर दिया गया। दूसरे सरकारी कार्पोरेशनों के आवेदन ख़ाली चले गए और सफलता मिली छत्तीसगढ़ की एक निजी कंपनी और उसके कंसोर्टियम को।

इस तरह से महाकुंभ 2025 के लिए पांटून पुलों में साल स्लीपर की लकड़ी की सप्लाई का आर्डर छत्तीसगढ़ की कंपनी धोरमनाथ ट्रेडर्स, श्रद्धा टिंबर्स, वसंत टिंबर्स आदि को दे दिया। हैरानी इस बात की भी थी दी इन कंपनियों ने साल स्लीपर की सप्लाई का आर्डर बेहद ही कम दरों यानि 1,58,000 रुपया प्रति क्यूबिक मीटर की दर से कोट किया, यानि साल 2109 की दर से भी कम पर। मतलब ये कि साल 2024 में जिस दर पर पांटून पुलों की ख़ातिर साल स्लीपर की सप्लाई का ठेका दिया गया वो साल 2019 की दर से भी कम था। हैरानी की बात ये रही कि पाँच सालों में ठेके की जो दरें बढ़नी चाहिए थीं, वो और भी कम हो गईं। सवाल उठा कि आख़िर निजी कंपनियों ने इतनी कम दर पर काम क्यों किया? क्या नतीजे में  क्वालिटी कंप्रोमाइज की गई?

इस बीच यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट भी पहुँचा। इस टेंडर में असफल होने वाली एक कंपनी डायनैमिक इंफ्राकान ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में आरोप लगाया गया कि ठेका जीतने वाली कंपनियों के पास पर्याप्त स्टॉक ही नहीं है फिर भी उन्हें ये ठेका दे दिया गया।

याचिका में कंपल्सरी इंस्पेक्शन की बात पर ज़ोर दिया गया जिसके मुताबिक़ टेंडर अवार्ड करने से पहले स्टॉक का फिजिकल इंस्पेक्शन किया जाना ज़रूरी था। मगर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से कहा गया कि ये फिजिकल इंस्पेक्शन ज़रूरी नहीं बल्कि वैकल्पिक या ऐच्छिक था। आवेदन करने वाली सभी कंपनियों को इस फिजिकल इंस्पेक्शन से राहत दे दी गई है और ये बात ही ख़त्म हो गई।

ये टेंडर छत्तीसगढ़ की धोरमनाथ ट्रेडिंग और उसकी सहयोगी कंपनियों के हाथ आ चुका था। उन्होंने सप्लाई शुरू की। सप्लाई शुरू होते ही नए सवाल खड़े हो गए।

अब पांटून पुलों के लिए सप्लाई किए गए साल स्लीपर में डैमेज की तस्वीरें सामने आने लगीं। इसी दौरान नागवासुकी पुलिया के धँस जाने का मामला सामने आया। यहाँ डैमेज पुलिया के चलते ट्रैक्टर उलट गया। अख़बारों में ख़बर छपी। शोर मचा।

मगर महाकुंभ के लिए तैयार किए जा रहे पांटून पुलों में डैमेज हुए साल स्लीपर की तस्वीरों के सामने आने के बावजूद कोई जाँच की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। स्थितियां ज्यों की त्यों बनी रहीं और महाकुंभ के अमृत स्नान शुरू हो गए। फिर मौनी अमावस्या का सबसे महत्वपूर्ण अमृत स्नान भी सामने आ गया।
 
इस दौरान जब पांटून पुलों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, ये पुल बंद पाए गए। इस बीच मौनी अमावस्या के स्नान में भगदड़ मची और काफ़ी लोगों की मौत हो गई। अब यहाँ पर 5 सवाल बेहद अहम हो जाते हैं। हमने ये सवाल महाकुंभ के मेला अधिकारी और साथ ही पीडब्लूडी के ज़िम्मेदार अधिकारियों से भी से पूछे हैं।

सवाल इस प्रकार हैं—

अरूणाचल प्रदेश का ऑर्डर कैंसिल क्यों किया गया ? 

झारखंड और हरियाणा के आवेदन को खारिज क्यों किया गया ? 

 साल 2024 में साल 2019 से कम रेट कैसे हो गए? 

 फिजिकल इंस्पेक्शन की शर्त में ढील क्यों दी गई? 

 खराब क्वालिटी के सवाल पर क्या एक्शन लिया गया?

हमें अभी तक इन सवालों के कोई जवाब नहीं मिले हैं। महाकुंभ में भगदड़ और निर्दोष मौतों की सच्चाई सामने आने की खातिर ये बेहद ज़रूरी है कि पांटून पुलों की जाँच हो। इसकी टेंडर प्रक्रिया की भी जाँच की जाए। ये सच सामने आना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि इस भगदड़ में सिर्फ़ मनुष्यों की ही मौत नहीं हुई है बल्कि मनुष्य के विश्वास की भी मौत हुई है!!!

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