Super Exclusive: यूपी के चीफ सेक्रेटरी ने माफ कर दिए सैकड़ों करोड़, शासन न न करता रह गया।

Super Exclusive: यूपी के चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार सिंह के एक आदेश ने यूपी सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपयों की हकदारी से वंचित कर दिया। इस एक आदेश से सरकारी खाते में आने वाले ये सैकड़ो करोड़ रुपए माफ कर दिए गए। बड़ी बात ये भी है कि खुद यूपी सरकार के न्याय विभाग ने इस माफी के खिलाफ राय दी थी। यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने इस सैकड़ों करोड़ की वसूली के लिए सहमति दी और इसे माफ न करने को कहा। यहाँ तक कि उत्तर प्रदेश शासन ने भी इसे माफ़ किए जाने के खिलाफ लिखा। बावजूद चीफ सेक्रेटरी ने अपने एक आदेश से इन्हें माफ कर दिया।
ये मामला यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के तहत आवंटित की गई जमीनों से जुड़ा हुआ है। ये ज़मीने साल 2009 में 25 - 250 एकड़ योजना के तहत 1629 रुपया प्रति वर्गमीटर की दर से आवंटित की गईं थीं। साल बदला, सरकार बदली। साल 2017 में यूपी में बीजेपी की सरकार जबरदस्त बहुमत से आई। इसके बाद ये निर्णय लिया गया कि इन ज़मीनों के आवंटन की दरों की नए सिरे से जांच की जाएगी।
सो जांच कमेटी बन गई। जांच कमेटी ने 26 अप्रैल 2018 को यमुना औद्योगिक विकास प्राधिकरण को अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी। रिपोर्ट में कहा गया कि भूमि आवंटन कम दरों पर किया गया। ये दरें 2670 रुपए प्रति वर्गमीटर होनी चाहिए थीं जबकि इन्हें केवल 1629 रुपया प्रति वर्ग मीटर पर आवंटित कर दिया गया। जांच समिति ने 1040 रुपए प्रति वर्गमीटर की दर से अतिरिक्त मांग करने के लिए कहा।
इसके बाद यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने 7 मई 2018 को हुई अपनी 63 वीं बैठक में तय किया कि इन सभी 13 आवंटियों से 1041 रुपया प्रति वर्गमीटर की दर से ब्याज समेत वसूली की जाए। इसके खिलाफ आवंटी हाईकोर्ट गए, जिसने इस पर स्टे दे दिया। दिलचस्प बात ये भी है कि हाईकोर्ट में भी यमुना प्राधिकरण ने अतिरिक्त वसूली का पुरजोर समर्थन किया।
हाईकोर्ट के स्टे के बाद एक आवंटी मारूति एजुकेशनल ट्रस्ट ने शासन के सामने रिवीजन एप्लीकेशन दाखिल की और अतिरिक्त वसूली के फैसले पर पुर्नविचार करने का आग्रह किया। इसके बाद ये मामला न्याय विभाग को उसकी राय के लिए भेजा गया। दिलचस्प बात ये है कि प्रदेश के न्याय विभाग ने भी इस बढ़े हुए दर की मांग को न्याय संगत और उचित करार दिया। इसके बाद उत्तर प्रदेश शासन की बारी आई। उत्तर प्रदेश शासन ने भी 31 जुलाई 2022 के अपने पत्र के जरिए ये कहा कि आवंटियों से बढ़ी हुई दर की मांग करना पूरी तरह उचित है। इसमें कोई दिक्कत नही है।
इसके बाद सभी 13 आवंटियों को नोटिस जारी कर दी गई। आवंटी ने इस मामले में रिवीज़न के लिए मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह जो योगी सरकार में औद्योगिक विकास आयुक्त भी हैं, के आगे प्रतिवेदन दिया। यूपी के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने इस मामले की सुनवाई की और पूरी की पूरी धनराशि माफ कर दी। उन्होंने 28 अगस्त 2024 के अपने आदेश में यहां तक लिखा कि इस मामले में बनाई गई जांच समिति के सदस्यों को प्राधिकरण के नियम कानूनों की पूर्ण जानकारी नही है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ऐसे फैसले सकारात्मक निवेश के माहौल को खराब करते हैं और इसके साथ ही इस एक आदेश के जरिए मारूति एजुकेशनल ट्रस्ट के लगभग 170 करोड़ रुपए माफ कर दिए गए।
मुख्य सचिव की कलम यहीं तक नही रूकी। उन्होंने यह भी लिखा कि प्राधिकरण का अतिरिक्त धनराशि की वसूली निर्णय जांच समिति की जिस रिपोर्ट पर आधारित है वो गलत विश्लेषण और गलत फाइंडिंग्स पर आधारित है। ऐसे में इस डिमांड नोटिस की उत्पत्ति जिन निर्णयों के आधार पर हुई है, उन्हें भी क्वैस यानि समाप्त किया जाता है। इस तरह से मारूति एजुकेशनल ट्रस्ट के साथ ही कुल 13 के 13 आवंटियों को इसका स्वत: लाभ मिलने की स्थितियां उत्पन्न हो गईं और सरकार को लगी चपत सैकड़ों करोड़ में पहुंच गई।
टॉप सीक्रेट ने इस सिलसिले में यूपी के मुख्य सचिव, यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ और मारूति एजुकेशनल ट्रस्ट तीनो को सवाल भेजे। उनका पक्ष पूछा मगर तीनों में से किसी ने भी अपना जवाब नही दिया। ये मामला इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यूपी के चीफ सेक्रेटरी के एक आदेश से यूपी सरकार के खाते में आते सैकड़ों करोड़ रुपए साफ़ हो गए!!!
हमने इस सिलसिले में योगी सरकार के सामने पाँच सवाल भी रखे हैं जो इस प्रकार हैं-
1 -आख़िर किसके कहने पर माफ की गई भारी भरकम रकम?
2 - जब शासन और न्याय विभाग तक ने वसूली को जायज ठहराया तो फिर माफ क्यूं किया?
3 - हाईकोर्ट के स्टे से लेकर 28 अगस्त के फैसले तक, आखिर अंदरखाने में हुआ क्या?
4- नोटिस देते समय निवेश के माहौल के बारे में नही सोचा?
5 - क्या ये सब सीएम योगी की जानकारी में है?
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